Tag: poetry

  • मी रमलो…

    मी रमलो…

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    तू जवळी नसता सखये, आठवांमध्ये मी रमलो,
    मी उघड्या नयनांनेही, स्वप्नांच्या नगरी रमलो

    मौनाच्या बुरख्यामागे, माजले मनीं काहूर
    हातात हात तू घेता, आश्वासक स्पर्शी रमलो

    संध्येस भरे मधूशाला, मद्याची चढली झिंग
    तव मिठीगंधाने चढल्या, कैफात सखे मी रमलो

    लागली आस मज आता, यापरी काही ना उमजे
    वाटते हर पळ पुढचा, सोबती तुझ्या मी रमलो

  • तुज विचारायचे होते…

    का आठव येतो आज, मन भावुक माझे होते,
    तव नाजूक गंधकुपिला, भूतात दडवले होते,

    का आज माझिया मनीचे, अस्वस्थ पाखरू होते,
    जणू पुनःपुन्हा भटकून, काहीसे शोधत होते,

    का कळले नाही मजला, तुजपाशी उत्तर होते,
    ओठांत अडकले माझ्या, जे विचारायचे होते,

    जर पुन्हा झाली भेट, तुज विचारायचे होते
    का आज मनाने तुही, तहानला चातक होते…

  • हा मार्ग शोधतो मी…

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    कित्येक वर्ष सरली, तुज दूर जाऊनीही,
    का आज आठवांशी, निशस्त्र भांडतो मी..

    का मोजले मला तू, दुजा कुणी म्हणुनी,
    हा विद्ध जाहलेला, तक्रार मांडतो मी..

    तू दूर लोटले का, मज आपुले म्हणुनी,
    कोडे कसे सुटावे, हा मार्ग शोधतो मी…

  • डावास नांव इश्क

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    डावास नांव इश्क, जो रंगात येत आहे,
    जीवास माझिया मी, दाव्यास लावताहे.

    ही खातरी मलाही, हरणार मीच आहे,
    रुपास त्या भुलूनी, फासे फितूर आहे,

    नजरेसमोर अजुनी, थोडे तिने असावे,
    म्हणून खेळतो मी, जरी हारलोच आहे.

  • बुढ़ापा

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    Photo by Saad Ahmed

    हर रोज़ सुबह जब मैं मेरे कमरेकी खिड़की खोलता हूँ,
    तो यही एक सवाल हमेशा होता है।
    के ये कौन है जो एक आंखसे हमेशा मुझको तांकते है।
    जिनका कश्मीरी गोरा रंग अब इन झुरनियोसे सजा हुआ है,
    एक अजिबसा wisdom झलकता है उस चेहरेपे।
    ये एक आँख बंद क्यों है और…
    और दूसरी उनींदी, मानो कबसे सोयेही न हो।
    शायद बुढ़ापा अब सोनेभी नही देता होगा।
    एक अरसा वो भी हुआ होगा,
    जब इन्ही दो आँखोने न जाने क्या क्या दुनिया देखी होगी।
    भरापूरा परिवार देखा होगा, खिला हुवा घर देखा होगा।
    वो चूल्हा देखा होगा, जहा मेहनतसे कमाई हुई रोटी पकती होगी।
    आँखोंमें ढेर सारा प्यार लेके उस चौखटपर खड़ी नवेली दुल्हन को देख होगा।
    उनके गृहस्थीके वसन्त, वर्ष और कभी कभी झुलसाते ग्रीष्म भी देखे होंगे।
    अपनी जगह से बड़ी संतुष्टिसे देखा होगा, जब नन्हे कदमोंसे खुशियाँ आयी थी।
    उन नन्हे कदमोंको अपने आंखोंके सामने बड़ा होतेभी देखा होंगा।
    पर तब ये आंखे कहा जानती थी के जो कदम बड़े हो रहे है,
    वो एक दिन बाहरकी और दौड़ेंगे, वापस न लौटनेके लिए।
    शायद, हा शायद तबसेही, ये एक आंख बंद है, और एक उनींदी….


    I had written this poem for a prompt of the week of Baithak and beyond. But uncertain weather got better of us and the session got postponed. So here’s the poem for you guys…

    Have fun. Stay blessed…

     

     

  • मुख़्तसरसी बात है…

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    मुख़्तसरसी बात है,
    तू जो सूनले तो मैं केह दु।

    तेरी होठोंकी लालिसे,
    और आँखोंकी गहराईपे,
    ना कोई नझ्म लिख दु,
    मुख़्तसरसी बात है…

    चंद लम्होकी मुलाक़ाते,
    बाकी बेचैन तनहाईकी
    कोई गझल ना केह दु.
    मुख़्तसरसी बात है…

    तेरे आतेही बढ़ी धडकने
    और सांस रुक गयी तो,
    उसे रुबाई न बना दु,
    मुख़्तसरसी बात है…

    घुमाकर न अब करते हैं बात,
    इश्क़का इजहार अब,
    तू जो कहदे तो मै कर दू।
    मुख़्तसरसी बात है,
    तू जो सूनले तो मैं केह दु।


    #LatePost Sorry guys, I missed the Monday post. Uploading this today.

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