मन आज़ाद है…
मन आज़ाद है।
भलेही पैरोमें पड़ी है बेड़ी, वास्तविकता की,
फिरभी वह आज़ाद है।
अपने आपको सूक्ष्म करके, खिसक जाता है,
इस जालीदार पिंजरेसे,
ऊंचा उड़ता है, किसी बाज़की तरह।
अपनी पैनी तीखी नजरे नीचे जमींके हालतपर जमाए हुए घूमता रहता है।
कभी अचानकसे एक मंझे हुए गोताखोरकी तरह झपट्टा मारता है, और फिर उड़ जाता है अपनी शिकार को पैरोंमें फसाए हुए।
कभी यह शिकार होती है किसी हदसेकि जो कोई कहानी बनके उतर आती है कागज़पे,
तो कभी कोई बेचैनी पकड़ी जाती है उन मजबूत पैरोंतले जिसका दर्द कोई कविता का रूप ले लेता है।
जब सांझ होती है और आसमान हल्का गुलाबी, केसरिया हो जाता है, तो बाज़ लौट आता है।
इसी जालीके पिंजरेसे होते हुए जब अंदर आता है,
तब वहां, सिर्फ एक मानवी शरीर मिलता है, भावनाओसे सराबोर…
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Nice Aaditya, reading you in Hindi for the first time buddy and am mighty impressed
Hey, thanks a lot!!!
Nice one. I like hindi poems. This one was short crisp and yet impactful.
#MyFriendAlexa #Jokerophilia
Loved this poem, I used to read Hindi literature a lot, but it has decreased over time. Please keep writing, would love to read more from you.
Such a great piece. So relatable. And the best part is I am reading it on Monday. Thus relatability increase many folds. Keep writing.