Adi's Journal

Pieces of my thourhgs

बारीश और तुम #३

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धुँवाधार बारिश है ये, थमने का कुछ नाम नही,
पहाडोसे बिछड़नेपर, शायद फुटके रो रही।

हम तुम भी तो बिछड़े है, महीनोसे ना मिल पाए,
इन बरसते बादलसीही, क्या तुमभी बेहाल हो?

जब हवा बादल उड़ा लाई, तबसे ये है जान गए,
मुलाकात अब पहाड़की, अगले साल ही नसीब है।

ये कंबख्त नौकरी जब, दूरी हममें डालती है,
आहे तुम भी भरती होगी, जुदाई बड़ी लम्बी है।

पानी छोड़ो हल्के होलो, झटसे फिर ऊपर जाएंगे,
शायद बादलोने सोचा हो, क्या ये फिजिक्स पढ़े है?

तुमभी यूँही सब करती हो, बससे सफर जब चालू हो,
समान छोड़ू, उतर जाऊ, लेने आओ  कहती हो।

बादल और पहड़की ये, कहानी सदियोंकी है,
सालाना जब बारिश हो तब, बादलकी शक्ल रोनी है।

ये बादल जब रोते है, मन उदास हो जाता है,
तुमसे फिरसे मिलनेमे, अबभी दो माह बाकी है।

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