Adi's Journal

Pieces of my thourhgs

रुकीसी जान…

दिलसे निकली ये जो बात
होठोमे दबी रही.
वो जो आए इस कदर
के ये जान रुकी रही.

उन झुल्फोके बिखर्ते
घटा काली छा गई
उनके होठोकी लालीपे
ये सांस रुकी रही.

न निकले लब्ज लबोंसे
चेहेरे पे सिर्फ हसी रही.
उनसे मुहब्बत हमारी
हम ही तक रुकी रही..


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