Category: कविता

  • आस

    लागली ग आज पहा, धार पाऊस संतत, तुला जमेना यायला, हीच मनी आहे खंत… [ Read more on https://adisjournal.com/aas/ ]

  • दूर सफरीला जावं

    एका शांतशा संध्येला, मन मनात म्हणालं, दूर क्षितिजाच्या पार, जरा सफारीला जावं. वाऱ्यावर आला गंध, होते मन उल्हासित, त्याचा माग ते काढत, पक्षी होऊन उडावं. उंच झाडांच्या शेंड्याला, घरट्यात उतरावं, खाली वाकून पाहता, सरितेने बोलवावं. नदीसंगे जरा जावे, दरीतून वाहवत, डोंगराच्या पाठी येता, पायवाटेवर यावं. लाली आभाळा चढता, डोंगराच्या माथी जावं, सूर्य अस्ताला जातांना, संगे…

  • सोहळा

    Beauty of our mother earth always shows variety of shades, but as soon as the month of Shravan comes around, beautiful wet greenery shining sunshine spreads all over. This poem is all about this gorgeous beauty of Nature.

  • श्रावण

    My new poem about gorgeous lover drenched in the showers of Shravan; the 5th month of Hindu calendar.

  • बारीश और तुम #३

    धुँवाधार बारिश है ये, थमने का कुछ नाम नही, पहाडोसे बिछड़नेपर, शायद फुटके रो रही। हम तुम भी तो बिछड़े है, महीनोसे ना मिल पाए, इन बरसते बादलसीही, क्या तुमभी बेहाल हो? जब हवा बादल उड़ा लाई, तबसे ये है जान गए, मुलाकात अब पहाड़की, अगले साल ही नसीब है। ये कंबख्त नौकरी जब, दूरी हममें डालती है, आहे…

  • बारीश और तुम #२

    कल रातकी बारिश कुछ बूंदे छोड गयी है, वहा खिडकीकी चौखटपर , मेरी कलाई की घडी मे फसी तुम्हारे कुर्तेके कुछ रेशमी धागों जैसी। मेरे कंधेपे सर रखकर अपनी उँगलिसे मेरे सिनेपे तुमने जो लिखे थे, वो अल्फाज अपने नाजुक हाथोंमें समेटे, देखो वो पल घूम रहे है मेरे इर्दगिर्द। जालीम हवा झोका कुछ बुंदोंको…