Tag: बारीश और तुम

  • बारीश और तुम #३

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    धुँवाधार बारिश है ये, थमने का कुछ नाम नही,
    पहाडोसे बिछड़नेपर, शायद फुटके रो रही।

    हम तुम भी तो बिछड़े है, महीनोसे ना मिल पाए,
    इन बरसते बादलसीही, क्या तुमभी बेहाल हो?

    जब हवा बादल उड़ा लाई, तबसे ये है जान गए,
    मुलाकात अब पहाड़की, अगले साल ही नसीब है।

    ये कंबख्त नौकरी जब, दूरी हममें डालती है,
    आहे तुम भी भरती होगी, जुदाई बड़ी लम्बी है।

    पानी छोड़ो हल्के होलो, झटसे फिर ऊपर जाएंगे,
    शायद बादलोने सोचा हो, क्या ये फिजिक्स पढ़े है?

    तुमभी यूँही सब करती हो, बससे सफर जब चालू हो,
    समान छोड़ू, उतर जाऊ, लेने आओ  कहती हो।

    बादल और पहड़की ये, कहानी सदियोंकी है,
    सालाना जब बारिश हो तब, बादलकी शक्ल रोनी है।

    ये बादल जब रोते है, मन उदास हो जाता है,
    तुमसे फिरसे मिलनेमे, अबभी दो माह बाकी है।

  • बारीश और तुम #२

    कल रातकी बारिश कुछ बूंदे छोड गयी है, वहा खिडकीकी चौखटपर ,
    मेरी कलाई की घडी मे फसी तुम्हारे कुर्तेके कुछ रेशमी धागों जैसी।

    मेरे कंधेपे सर रखकर अपनी उँगलिसे मेरे सिनेपे तुमने जो लिखे थे,
    वो अल्फाज अपने नाजुक हाथोंमें समेटे, देखो वो पल घूम रहे है मेरे इर्दगिर्द।

    जालीम हवा झोका कुछ बुंदोंको चौखटसे गिराकर गया है अभी अभी,
    जैसे वक़्तकी टिकटीकाती सुइयोंने बडी बेरेहेमीसे तुम्हे मेरे बाहोंसे छीना था।

    कुछ और भी बूंदे शायद शहिद हो जाती उस बेरहम हवा के झोंकेसे,
    पर तुम्हारी यादोंकी तरह उन्हें भी बचा लिया है मैंने।
    खिड़किया जो बंद करली है मैंने कमरेकी, और दिल की भी।

  • बारीश और तुम #१

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    हर पल जब असमान से कुछ बुंदे मेरे उपर गिरती है,
    दिल के किसीं कोनेसे तुम्हारी आवाज आती है।

    मेरा गिला बदन तुम्हारी यादोसे मेहेकता है,
    मानो महिनोसे झुलसे हुए मिट्टीपे पेहेली बारिश गिरी है।

    कभी बिजली कडकती है, और मै भी थोडा कांपता हू,
    मेहसूस करता हू, जैसे तुम कांपके मुझसे पिहली बरसात मे लिपटी थी।

    तुम्हारा गीला बदन, अभिभी मुझपे ओढे इस खिडकी मे खडा हू,
    रसोईसे आती गर्म कॉफी की खुशबू आज भी तुम्हारेही पसंदकी है।

    खुले खिडकिसे कोई बुंदे जब मुझ पे आंके गिरती है,
    तो दिल की किसीं गेहराईसे तुम्हारी आवाज आती है।