Category: Hindi

  • Along this road || a Hindi Poem | सड़क के किनारे… || हिन्दी कविता

    Along this road || a Hindi Poem | सड़क के किनारे… || हिन्दी कविता

    March hasn’t even ended, yet the sun blazes fiercely in the sky. The scorching heat beats down on everyone and everything that walks this earth. I’m sure I’m not the only one craving a cool shower to escape this sweltering weather. This summer is so intense right from the start that it feels like May already. It reminded me of an old poem of mine, narrating the thoughts of a person walking down the road on a May afternoon.

    सड़क के किनारे…

    मई की भरी दोपहर में,
    जब चलता हु उन तपती मैली सड़को पर,
    मनमे ख़याल आता है,
    कई हस्तियाँ चली होंगी, उम्र से लम्बी इन सड़को पर।

    कई सपने चूर होक बिखरे होंगे,
    इसकी धुंदली सी गलियों के हर मोड़ पर।
    तो किसीने उम्मिद की किरण का हात थामे,
    यहिं से मंझिल की ओर कदम बढाया था।

    किसी मजनूने हसी राज बांटे होगे,
    इसी नुक्कड़ पर अपने दोस्तों से।
    तो कही दूर, सड़कके किनारे, धुल महकी होगी,
    टपके हुए टूटे दिलके आंसूओं से।

    इन्ही गुजरी जिंदगियों को छूता हुवा,
    मै चल रहा हु, मई की भरी दोपहर में,
    अपनी मंझिलकी ओर,
    मेरे ज़िन्दगीके चंद लम्हें छोडकर इसी सड़कके किनारे….
    ~~~
    आदित्य साठे


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  • Rain and You || A Hindi Poem | बारिश और तुम || हिन्दी कविता

    Rain and You || A Hindi Poem | बारिश और तुम || हिन्दी कविता

    Rain and you || बारिश और तुम

    It’s not even April yet, and the heat is already scorching. The sun feels like it’s blasting its flares at max settings. This always brings to mind poet Saumitra’s lines from one of my favorite poems:

    ऊन जरा जास्तय,
    दर वर्षी वाटतं…

    – सौमित्र (अल्बम: गारवा – १९९८)

    On days like this, when the heat is relentless, all you can think about is a cooling shower of rain. And with the thought of rain comes an inevitable flood of memories—some filled with joy, others tinged with pain.

    Today’s poem takes me back to a time when I was experimenting with Hindi poetry. That sweltering summer inspired a collection of ‘rain poems’ in Hindi, and this is one of them. Hope you enjoy it!

    हर पल जब असमान से कुछ बुंदे मेरे उपर गिरती है,
    दिल के किसीं कोनेसे तुम्हारी आवाज आती है।

    मेरा गिला बदन तुम्हारी यादोसे मेहेकता है,
    मानो महिनोसे झुलसे हुए मिट्टीपे पेहेली बारिश गिरी है।

    कभी बिजली कडकती है, और मै भी थोडा कांपता हू,
    मेहसूस करता हू, जैसे तुम कांपके मुझसे पिहली बरसात मे लिपटी थी।

    तुम्हारा गीला बदन, अभिभी मुझपे ओढे इस खिडकी मे खडा हू,
    रासोईसे आती गर्म कॉफी की खुशबू आज भी तुम्हारेही पसंदकी है।

    खुले खिडकिसे कोई बुंदे जब मुझ पे आंके गिरती है,
    तो दिल की किसीं गेहराईसे तुम्हारी आवाज आती है।


    आदित्य साठे


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  • Jaddojahad || a Hindi poem | जद्दोजहद || हिन्दी कविता |

    Jaddojahad || a Hindi poem | जद्दोजहद || हिन्दी कविता |

    Last month, I shared the story of how my collaboration with my friend Snehal began. Our collaborative journey as artists started with the inception of our desk calendar series in 2021. In that post, I included a Hindi translation of a free verse I wrote for the 2022 calendar, रेखांकित शब्दांकित २०२२. That same calendar features another beautiful painting in vibrant shades of yellow and orange. This artwork sparked my thoughts on the concept of duality and the internal struggle of whether to embrace it or resist it—thus, द्वंद्व (duality, as in conflict) was born. Today, I wanted to share with you a Hindi translation of the same, titled जद्दोजहद. I hope you enjoy it as well!

    जद्दोजहद is the second translation I am doing for the wonderful Blogaberry Dazzle community. Your guys were very kind in your feedback on खिड़की. It was truly motivating and I couldn’t resist trying my hand at another one.

    मराठी कविता

    द्वंद्व

    एक अथक द्वंद्व सुरू आहे माझ्या मनात.
    अगदी अनादी काळापासून.
    संघर्ष आहे तुझ्या माझ्यातला,
    की कळत नाहीये तो आहे माझ्याशीच माझा.

    सतत दिसून येतं डावं ऊजवं.
    जणू बसलं आहे लावून स्वताच्याच पाठीला पाठ,
    संवाद तोडून कुढतं कधी मनातल्या मनात.

    कधी कधी जेव्हा डोळे उघडतात तेव्हा विचारावंसं वाटतं.
    हेच द्वंद्व सुरू आहे का तुझ्याही मनात?
    ~~
    आदित्य साठे
    ०९-१०-२०२१

    हिन्दी अनुवाद

    जद्दोजहद

    एक जद्दोजहद चल रही है,
    न जाने कब से इस दिल में।
    क्या पता ये झगड़ा है, तुम्हारे और मेरे बीच का,
    या फिर है ये विवाद है मुझ से ही मेरा।

    ये दाया, ये बाया हर वक़्त नजर आता है,
    मानो एक दूसरे की ओर पीठ कर के खीझते बैठे हो।
    कोई बात नहीं, जैसे मनमुटाव हो।

    कभी कभी खयाल आता है,
    जब नजर घूमती है तुम्हारी तरफ, के पूछ ही लूं तुम से।
    क्या यही जद्दोजहद चल रही है, तुम्हारे भी दिल में?
    ~~
    आदित्य साठे
    ०९-१०-२०२१


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  • दोस्त…

    दोस्त…

    दोस्त….

    आज तुम्हारी बड़ी याद आ रही है।
    अब याद भी नहीं की आखरी मिले कितना समय गुजर गया।
    पर वो याद आज भी ताजा है,
    जब पहली बार हम मिले थे।
    वैसे ये कहना झूठ ही होगा की,
    उस मुलाकात का हर पहलू मुझे याद है।
    लेकिन कुछ बारीकियां दिमाग में जैसे के तैसी बैठी है।
    हमारी माताएं दोस्त थी, हमारी दोस्ती होना तो लाजमी था।
    लेकिन दोस्ती निभाना हमारा अपना निर्णय।
    जिस पर सालों से हम कायम है।

    मां की उंगली थामे होती हुई अपनी मुलाकाते
    आगे पाठशाला की रह पर चल पड़ी।
    हर रोज कॉपी, किताबों में मिली,
    धूप में क्रिकेट खेलते ग्राउंड में पकी दोस्ती
    और गहरी होती गई।

    फिर आया वो मकाम,
    जब रोज साथ में चलते रास्ते में एक मोड़ आया।
    जिंदगी की रह पर चलने का समय आया।
    तुमने अपना रास्ता चुना और मैंने अपना।

    मुलाकाते अब रोज नहीं होती।
    अब सालाना दशहरा – दिवाली की छुट्टियों में मिलना होता है।
    ना, ऐसी बात नही है के मैं बिल्कुल जस्बाती हूं,
    और हमेशा पुरानी यादों को लेकर रोता रहता हूं।
    पर कभी कभार, कुछ गाने, कोई चित्र, कोई खुशबू,
    ले जाती है मुझे अतीत के सफर पर।
    आज वैसे ही, तुम्हारी बड़ी याद आ रही है।
    जब आज सुबह मैंने देखा,
    दो माताएं अपने अपने बच्चों को गोद में उठाए बड़े मजे से बतिया रही थी…


    आदित्य साठे
    २२-०५-२०२४


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  • उनींदी…

    उनींदी…

    उनींदी... || Uneendi - (Sleepy) ||
    उनींदी… || Uneendi – (Sleepy) ||

    हर रोज़ सुबह जब मैं मेरे कमरे की खिड़की खोलता हूँ,
    तो यही एक सवाल हमेशा होता है।
    के ये कौन है जो एक आंख से हमेशा मुझको ताकते है?
    जिनका कश्मीरी गोरा रंग अब इन झुर्रियों से सजा हुआ है,
    एक अजिबसा wisdom झलकता है उस चेहरेपे।

    ये एक आँख बंद क्यों है और…
    और दूसरी उनींदी, मानो कब से सोये ही न हो।
    शायद बुढ़ापा अब सोने भी नहीं देता होगा।

    एक अरसा वो भी हुआ होगा,
    जब इन्ही दो आँखो ने न जाने क्या क्या दुनिया देखी होगी।
    भरा पूरा परिवार देखा होगा, खिला हुआ घर देखा होगा।
    वो चूल्हा देखा होगा, जहां मेहनत से कमाई हुई रोटी पकती होगी।
    आँखोंमें ढेर सारा प्यार लेके उस चौखटपर खड़ी नवेली दुल्हन को देख होगा।

    उनके गृहस्थीके वसन्त, वर्षा और कभी कभी झुलसाते ग्रीष्म भी देखे होंगे।
    अपनी जगह से बड़ी संतुष्टिसे देखा होगा, जब नन्हे कदमोंसे खुशियाँ आयी थी।
    उन नन्हे कदमोंको अपने आंखोंके सामने बड़ा होतेभी देखा होंगा।

    पर तब ये आंखे कहा जानती थी के जो कदम बड़े हो रहे है,
    वो एक दिन बाहरकी और दौड़ेंगे, वापस न लौटनेके लिए। 

    शायद, हां शायद तब से ही, ये एक आंख बंद है, और एक उनींदी….


    आदित्य साठे


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  • अब मुलाकात नहीं होती…

    अब मुलाकात नहीं होती…

    हा, मै मिला हूं उससे,
    बिल्कुल आप जैसा सोच रहे है वैसा ही था।
    पूरा पागल,
    अपने ही धुन में खोया हुआ।
    पहली बार जब उससे मुलाक़ात हुई तो मै तो सेहम सा गया था।
    शायद तुम होते तो तुम भी यही कहते।
    बिखरे लंबे बाल, ये बड़ी दाढ़ी। कोई बूढ़ा पागल नहीं था। बदन पूरा कसरती था। उम्र, वही कुछ ३० या ३५ के करीब। बदन पे एक मैला कुर्ता और कंधे पे एक झोला लिए वो चल पड़ता था।

    पर एक अजीब सा अपनापन भी मेहसुस होता है जब मैं सोचता हुं उस के बारें में।
    उसे प्यार था उन पेड़ों से, जानवरों से, नदी से, पहाड़ से। उस हर एक चीज से जिसमें उसे प्रकृति की छबि नजर आती थी।
    उन की देखभाल में खाना पीना सब भूल जाता था। उसका एक सपना था, कभी जिंदगी में खुदका एक जंगल होगा। जहा एक तालाब के किनारे किसी पेड़ पर एक ट्री हाउस बना के वो उसमे रहे।

    पर काफी दिन हो गए उससे मुलाकात नहीं हुई। उसके रोज के ठिकानों पे भी आज कल वो कही दिखाई नही देता। गायब होने से पहले उसने बताया था के वो किसी नई कोयले के खदान के बारे में सुन कर कितना परेशान है। कभी मिले तो उसे जरूर बताउंगा की घर का एसी अब अच्छा चल रहा है। शुक्र है, नया कोल पावर प्लांट शुरू हो गया है।


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