उनींदी…
हर रोज़ सुबह जब मैं मेरे कमरे की खिड़की खोलता हूँ,
तो यही एक सवाल हमेशा होता है।
के ये कौन है जो एक आंख से हमेशा मुझको ताकते है?
जिनका कश्मीरी गोरा रंग अब इन झुर्रियों से सजा हुआ है,
एक अजिबसा wisdom झलकता है उस चेहरेपे।
ये एक आँख बंद क्यों है और…
और दूसरी उनींदी, मानो कब से सोये ही न हो।
शायद बुढ़ापा अब सोने भी नहीं देता होगा।
एक अरसा वो भी हुआ होगा,
जब इन्ही दो आँखो ने न जाने क्या क्या दुनिया देखी होगी।
भरा पूरा परिवार देखा होगा, खिला हुआ घर देखा होगा।
वो चूल्हा देखा होगा, जहां मेहनत से कमाई हुई रोटी पकती होगी।
आँखोंमें ढेर सारा प्यार लेके उस चौखटपर खड़ी नवेली दुल्हन को देख होगा।
उनके गृहस्थीके वसन्त, वर्षा और कभी कभी झुलसाते ग्रीष्म भी देखे होंगे।
अपनी जगह से बड़ी संतुष्टिसे देखा होगा, जब नन्हे कदमोंसे खुशियाँ आयी थी।
उन नन्हे कदमोंको अपने आंखोंके सामने बड़ा होतेभी देखा होंगा।
पर तब ये आंखे कहा जानती थी के जो कदम बड़े हो रहे है,
वो एक दिन बाहरकी और दौड़ेंगे, वापस न लौटनेके लिए।
शायद, हां शायद तब से ही, ये एक आंख बंद है, और एक उनींदी….
—
आदित्य साठे
उनींदी… || Uneendi – (Sleepy) || is a part of Blogchatter Blog Hop.
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