तू क्यों समज़े ना…
सुना है ये जहाँ
सजना तेरे बिना
इस ख़ामोशी की जुबाँ
जिसे तू क्यों समज़े ना.
इन लम्होकी ये दूरियाँ
जैसे गुजरी कई सदियाँ
बात की है इन आंखोने
क्यों तुम तक ये पहुचे ना.
लगी सावन की है जो झडी
हर अंग जो सुलगाए
इस सुलगनेकी दासताँ
क्यों तुमको ये भाए ना.
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badhiya hai………. ekdam……
real nice bro ….
Sajna kyu samjhe na ….lovely words