Adi's Journal

Pieces of my thourhgs

दूर सफरीला जावं

एका शांतशा संध्येला, मन मनात म्हणालं, दूर क्षितिजाच्या पार, जरा सफारीला जावं. वाऱ्यावर आला गंध, होते मन उल्हासित, त्याचा माग ते काढत, पक्षी होऊन उडावं.

बारीश और तुम #३

धुँवाधार बारिश है ये, थमने का कुछ नाम नही, पहाडोसे बिछड़नेपर, शायद फुटके रो रही। हम तुम भी तो बिछड़े है, महीनोसे ना मिल पाए, इन

बारीश और तुम #२

कल रातकी बारिश कुछ बूंदे छोड गयी है, वहा खिडकीकी चौखटपर , मेरी कलाई की घडी मे फसी तुम्हारे कुर्तेके कुछ रेशमी धागों जैसी। मेरे

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